среда, 4 января 2012 г.

आज अचानक दो कविताएँ लिख दीं। आज चार जनवरी 2012 के दिन।

जीवन-दो कविताएँ
1.
वहाँ
ऊपर पेड़ पर
काँपती है पत्ती

यहाँ
नीचे देह में
काँपता है मन

कितना
अस्थिर है जीवन

2.
चलते रहो,
चलते रहो
बादलों की तरह चलते रहो

चलते रहो हवा की तरह
प्रकाश की तरह
ध्वनि की तरह
समय की तरह चलते रहो लगातार

चरैवेति-चरैवेति
ब्रह्माण्ड में ग्रहों की तरह
पृथ्वी की तरह लगातार घूमते रहो
नदी की तरह बहते रहो जीवन

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